जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा उत्सव की शुरूआत हरियाली अमावस्या के दिन गुरुवार को पाटजात्रा पूजा के साथ होगी। इसके लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। बिलोरी के जंगल से साल का पेड़ काटकर तना का टुकड़ा जिसे टुरलू खोटला कहा जाता है। बुधवार शाम को यहां मां दंतेश्वरी मंदिर परिसर के समीप कार्यक्रम स्थल में पहुंचा दिया गया। सुबह 10 बजे से बस्तर दशहरा की पहली रस्म पाटजात्रा में इसी लकड़ी (टूरलू खोटला) की पूजा अर्चना होगी।
बस्तर दशहरा के लिए रथ बनाने वाले कारीगर इसी लकड़ी से अपने औजारों का बेंठ तैयार करते हैं। पाटजात्रा विधान में पूजा-अर्चना कर बकरा, मांगुर मछली की बलि दी जाती है। दंतेश्वरी मंदिर के पास बस्तर महाराजा स्व. प्रवीरचंद भंजदेव की प्रतिमा के सामने कार्यक्रम संपन्ना होगा। जिसमें बस्तर दशहरा समिति के पदाधिकारी, टेंपल ईस्टेट कमेटी के अधिकारी, दंतेश्वरी शक्तिपीठ के जिया- सेवादार, विभिन्ना परगनों से आए मांझी, चालकी, मेंबर-मेंबरीन आदि मौजूद रहेंगे।
दशहरा उत्सव कार्यक्रम जारी
28 जुलाई- पाटजात्रा पूजा विधान
आठ सितंबर- डेरी गड़ाई पूजा विधान।
25 सितंबर- काछनगादी पूजा विधान।
26 सितंबर- कलश स्थापना एवं जोगी बिठाई पूजा विधान।
27 सितंबर से दो अक्टूबर- प्रतिदिन नवरात्र पूजा विधान एवं रथ परिक्रमा पूजा विधान।
दो अक्टूबर- बेल पूजा।
तीन अक्टूबर- महाअष्टमी एवं निशा जात्रा पूजा विधान।
चार अक्टूबर- कुंवारी पूजा विधान, जोगी उठाई एवं मावली परघाव पूजा विधान।
पांच अक्टूबर- भीतर रैनी एवं रथ परिक्रमा पूजा विधान।
छह अक्टूबर- बाहर रैनी एवं रथ परिक्रमा पूजा विधान।
सात अक्टूबर- काछनजात्रा पूजा विधान एवं मुरिया दरबार।
आठ अक्टूबर- कुटुंब जात्रा पूजा विधान।
11 अक्टूबर- मावली माता की डोली की विदाई पूजा विधान।