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हलषष्ठी का महापर्व आज, संतान प्राप्ति एवं सुरक्षा के लिए महिलाएं रखेंगी व्रत…

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कमरछठ के दिन सुहागिनमन गांव के चौपाल म सेकला के मिलजुर के पूजा-पाठ करथें। सबले पहिली महतारी पूजा के बिधान हे। चौपाल म एकठिन नानकीन गड्ढा खान के वोमा सिव-पारवती, गनेस, कारतिक के मूरति इसथापित करथें। लोक रीति के मुताबिक छत्तीसगढ़ म सुहागिनमन उपास रहिके देवी-देवता के पूजा-पाठ करथें। पलास अउ कुसा के तरी सिव, पारबती, गनेस अउ कारतिक के मूरति के इसथापना करथें।
सास्त्र म बताय हावय के कमरछठ उपवास करे के बाद एक दिन वोकर उद्यापन घलो करना चाही। वो दिन सोना, चांदी, गो, कपड़ा आदि दान देय के नियम हे। उतरा के गरभ से जन्म लेवई बालक ह वीर पराकरमी परीछित नांव से जगविख्यात होइस।
भा दो के अंधेरी पाख के छठ के दिन ह सुहागिन मन बर सौगात लेके आथे। वोमन ए दिन संतान अउ वोकर उत्तम सुवास्थ बर मनौती मांगथे। हमर छत्तीसगढ़ म ए दिन ह कमरछठ कहाथे। अइसे ऐला हलसस्ठी कहे जाथे। छठ के दिन सुभ मुहुरत म उठके मंगल पाठ करके गनेस आदि देवी-देवता के पूजा-अरचना करना चाही। छठ के उपास रखे ले गरभ के लइका के रक्छा होथे अउ समे के पहिली गरभ ह नइ गिरय। ए दिन नागर (हल) अउ कुदारी से उपजे अन्ना खाय के मनाही रहिथे। मनखे जीवन करम परधान होय के सेती ए बरत ल कमरछठ घलो कहे जाथे।
कमरछठ के दिन सुहागिन मन गांव के चौपाल म सकला के मिलजुर के पूजा-पाठ करथें। सबले पहिली महतारी पूजा के बिधान हे। चौपाल म एकठिन नानकीन गड्ढा खान के वोमा सिव-पारवती, गनेस, कारतिक के मूरति इसथापित करथें। लोक रीति के मुताबिक छत्तीसगढ़ म सुहागिन मन उपास रहिके देवी-देवता के पूजा-पाठ करथें। पलास अउ कुसा के तरी सिव, पारबती, गनेस अउ कारतिक के मूरति के इसथापना करथें। धूप, दीप, फूल, पान चढ़ाथें। ऊॅ नमो सिवाय: के जयकारा करथें। फरहर के रूप म अपने आप उगे भाजी, पसहर चाउर, दूध-दही, घी लेय के नियम हे। लाई अउ महुआ फर पूजा के समे देवता ल चघाय जाथे। ये उपवास ह कठिन होथे तभो ले माइलोगन मन जीयत भर रहिथें।

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