राजिम। धर्म नगरी राजिम के प्रतिष्ठित महाविद्यालय के स्वर्ण जयंती वर्ष के अंतर्गत शासकीय राजीव लोचन स्नातकोत्तर महाविद्यालय,राजिम मे सरदार वल्लभभाई जयंती के अवसर पर यूनिटी फॉर रन, नगर पंचायत से एमओयू के तहत एकता संबंधी दौड़ तथा महाविद्यालय में नैक, राजनीति विभाग व इतिहास विभाग के संयुक्त तत्वावधान में परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। महाविद्यालय में प्रातः काल एकता दौड़ का आयोजन एनएसएस व पीजीडीसीए के छात्र-छात्राओं द्वारा आलोक हिरवानी के नेतृत्व में करवाया गया | इसके बाद राजिम नगर पंचायत के मुख्य द्वार से राजिम नगर में साइकिल रैली का आयोजन किया गया जिसके तहत विद्यार्थियों के द्वारा जनमानस में एकता का प्रचार किया गया। तत्पश्चात महाविद्यालय में राष्ट्रीय एकता दिवस पर परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का प्रारंभ संस्था प्रमुख प्राचार्य डॉ.सी एल देवांगन के द्वारा मां सरस्वती की पूजा अर्चना कर व सरदार वल्लभ भाई पटेल को श्रद्धांजलि अर्पित कर किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल का भारतीय राजनीति व भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत उस समय 562 देसी रियासतों में बटा हुआ था जिन सभी को एक कर उन्होंने भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाया था, इसी कारण उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इतिहास विभागाध्यक्ष आकाश बाघमारे ने पीपीटी के माध्यम से व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल महात्मा गांधी के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को गतिशील बनाया। उन्होंने सर्वप्रथम खेड़ा सत्याग्रह में भाग लिया तत्पश्चात महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में अपना योगदान दिया। चौरी- चौरा कांड के बाद कुछ कांग्रेस के परिवर्तनवादी नेताओं ने गांधीजी का विरोध किया लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल ने गांधी जी का साथ नहीं छोड़ा और उनके साथ मिलकर कई आंदोलनों में उनका साथ दिया। 1928 मे बारदोली में उन्होंने किसानों का साथ दिया और वहां लगान को कम किया। इसीलिए बारदोली की महिलाओं ने प्रसन्न होकर उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की थी। राजनीति विभाग के अतिथि प्राध्यापक श्री प्रदीप टंडन ने भी पीपीटी के माध्यम से सरदार वल्लभ भाई पटेल का राजनीति में योगदान विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल ने 362 देसी रियासतों को एक करके अखंड भारत की स्थापना की थी इस वजह से उन्हें भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। राजनीति विभागाध्यक्ष डॉ समीक्षा चंद्राकर ने कहा कि किसी भी देश का आधार उसकी एकता और अखंडता में निहित होता है और सरदार पटेल देश की एकता के सूत्रधार थे। सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई में हुआ था। सन 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरान्त ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था। इस परिचर्चा में प्रो एम एल वर्मा, डॉ. गोवर्धन यदु, डॉ. देवेंद्र देवांगन, क्षमा शिल्पा मसीह, राजेश बघेल, मुकेश कुर्रे व अन्य प्राध्यापकगण सम्मिलित हुए साथ ही दिलीप, तेज, कमल, निखिल,हुमन, खुशी , भूमिका आदि विद्यार्थियों ने इस व्याख्यान में अपनी सहभागिता दर्ज किया।