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18 साल की उम्र में ही देश के लिए बलिदान हो गया, अंग्रेजो के छुड़ा दिए पसीने, कौन है वो?

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नई दिल्ली : Yuva diwas 2023 : एक ऐसी उम्र में जहां हममें से ज्यादातर लोग यह पता लगाने में असमर्थ रहते हैं कि जीवन में क्या करना चाहिए। देश के युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने न केवल वीरता के साथ ब्रिटिश उपनिवेशवाद का विरोध करने का निर्णय लिया, बल्कि उनकी वीरता ने उन्हें मात्र 18 साल का शहीद बना दिया। खुदीराम बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रमुख युवा क्रांतिकारियों में से एक थे। वह सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी आंदोलन के गवाह बने

बोस ने उड़ाई अंग्रेजों कि रातो की निंद
Yuva diwas 2023 : खुदीराम बोस अंग्रेजों के लिए एक बुरे सपने की तरह थे । इसीलिए, भले ही कानून ने उसे फांसी की अनुमति नहीं दी, लेकिन अंग्रेजों ने कानून का उल्लंघन किया और उन्हें मौत की सजा सुना दी। आइए जानते हैं इस महान स्वतंत्रता सेनानी के बारे में।

ऐसा रहा खुदीराम बोस का जीवन
Yuva diwas 2023 : उनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के केशपुर ब्लॉक के मोहोबोनी गांव में हुआ था। अपनी छोटी उम्र से ही, उनकी आंखों ने कह दिथा था कि वे भारत के भविष्य के अजादी लिए सबसे बड़े स्तंभ होंगे। उनकी नेतृत्व क्षमता ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे ला दिया।

30 अप्रैल, 1908 को मुजफ्फरपुर में, बोस ने अपने साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ उस गाड़ी पर बम फेंका जिसमें किंग्सफोर्ड, बिहार का मजिस्ट्रेट यात्रा कर रहे थे। हालांकि, किंग्सफोर्ड गाड़ी में यात्रा नहीं कर रहे थे पर गाड़ी में बैरिस्टर प्रिंगल कैनेडी की पत्नी और बेटी थी, जिनकी इस हादसे में मौत हो गई।

भागवदगीता में कर्म की बात से प्रभावित थे खुदीराम बोस
Yuva diwas 2023 : भारत को ब्रिटिश शासन के चंगुल से मुक्त कराने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए थे। 1905 में बंगाल के विभाजन की ब्रिटिश नीति से असंतुष्ट होकर बोस क्रांतिकारियों की पार्टी जुगंतर में शामिल हो गए। महज 16 साल की उम्र में खुदीराम बोस ने पुलिस स्टेशन के पास बम फेंका और ब्रिटिश अधिकारियों पर भी बम से हमले किए। इस आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। महज उन्हें 17 साल की उम्र में मौत की सजा सुनाई गई थी। 11 अगस्त 1908 को उन्हें फांसी की सजा दी गई थी।

फांसी से पहले जेलर में बोस को दिए थे आम
Yuva diwas 2023 : 11 अगस्त 1908 को सुबह छह बजे खुदीराम बोस को फांसी देनी थी। 10 अगस्त की रात को उमके पास जेलर आम लेकर पहुंचे और खुदीराम को भेट स्वरुप देते हुए बोले ‘खुदीराम, ये आम मैं तुम्हारे लिए लाया हूं। तुम इन्हें खा लो, मेरी एक छोटी सी भेट स्वीकार करो। मुझे अच्छा लगेगा। खुदीराम ने वह आम लेकर कोठरी में रख दिया।

अगले दिन जब जेलर बोस को लेने पहुचे तो आमों को वैसे ही रखा देख पुछा खुदीराम तुमने आम नहीं खाए। यह बोल वह आम उठाने झुके और जैसे ही आम छुए वह पिचक गए। यह देख बोस जोर-जोर से हंसने लगे और कहा मैंने आम रात में ही खा लिया था। जेलर खुदीराम की मस्ती पर मुग्ध और आश्चर्यचकित हुए बिना नही रह पाए। जेलर ने कहा, ‘खुदीराम जैसे लोग इस मातृभूमि के रत्न हैं। ऐसे महापुरुष बार-बार हमारी मातृभूमि पर जन्म लें।’

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