राजिम। माघी पुन्नी मेला में रंगतरंग लोककला मंच रायपुर की लोकगायिका सुश्री तारा साहू ने मीडिया सेंटर में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति अत्यंत समृद्ध हैं। मेरे घर में संगीत का कोई माहौल नहीं था स्कूलों में सहपाठी के साथ मिलकर गीत गाती थी, जिसे सुनकर शिक्षक शाबासी देते थे। धीरे-धीरे रूझान बढ़ता गया और रामायण, जगराता, भजन संध्या जैसे कार्यक्रम में जाकर प्रस्तुति देने लगी। इस दौरान कई लोग भला-बूरा कहते रहे, लेकिन उसकी परवाह न करते हुए जैसे-जैसे अवसर मिलते रहा आगे बढ़ता रही। कला मेरे लिए वरदान है सन् 2006 में लोककला मंच दूज के चँदा से जुड़ी सन् 2010 में प्रसिद्ध लोक गायिका सीमा कौशिक के साथ मंच साझा किया। उससे मुझे जो खुशी मिलनी थी नहीं मिल पायी। बावजूद इसके मेरी मेहनत कम नहीं हुई। मैं मान कर चलती थी कि 21वीं सदी स्टेज का जमाना है।
पैसे कमाने के लिए खूब मेहनत करना है तमन्ना थी कि इसी पैसे से अपने लिए स्कूटी खरीदूँ। बी.ए. तक पढ़ाई कर अभी खैरागढ़ विश्वविद्यालय से लोककला में डिप्लोमा कर रही हूँ। जॉब करके सपना पूरा करना मुश्किल था क्योकिं जो दिखता है वह बिकता है। इसलिए प्रतिदिन खूब मेहनत करती रही । लोक गायिका के साथ मैं एक्ट्रेस भी हूँ। छत्तीसगढ़ी फिल्म तिरीया के चक्कर, बाप बड़े न भैया सबसे बड़ा रूपईया जैसे दर्जनों फिल्मों पर काम कि हूँ। मेरी इच्छा है कि छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को लेकर बहुत आगे तक जाऊँ। अभी तक 800 से ज्यादा मंचों में प्रस्तुति कर चुकी हूँ। भोरमदेव महोत्सव, मैनपाट महोत्सव, सिरपुर महोत्सव, राज्योत्सव के अलावा पिछले साल राजिम माघी पुन्नी मेला मे प्रस्तुति देना यादगार क्षण रहा।पिछले वर्ष आधे घण्टे में दो घण्टा का कार्यक्रम परोसना था। प्रारम्भ होने में मात्र 20 मिनट शेष था। मंच मे कलाकार बैठने के लिए पहुँच चुके थे। लेकिन संगीत पक्ष के आर्गन प्लेयर नहीं आये थे। समापन दिवस था। गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या मे उपस्थित थे। स्थिति-परिस्थिति को देखकर मैं खूब रोई परन्तु हिम्मत नहीं हारी। अचानक चमत्कार देखने मिला और आर्गन बजाने वाला मिल गया। आधे घण्टे में छतीसगढ़ी बारह मासी गीत एवं जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारित गीत प्रस्तुति ने खूब वाहवाही लुटी। राजिम महोत्सव में यह मेरा दूसरा कार्यक्रम है। तारा साहू ने आगे बताया कि जीवन में उथल-पुथल लगा रहता है इसका मतलब घबराने कि जरूरत नहीं। सुख और दुख दोनों आते हैं, कर्म करते रहें समय आने पर फल जरूर मिलेगा। क्योंकि कला मरती नहीं बल्कि अमर बना देती है।