दिल्ली। कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और आईसीएआर संस्थानों के निदेशकों के वार्षिक सम्मेलन के अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ। कृषि उत्पादन बढ़ाने और लागत घटाने में अनुसंधान की बहुत अहम भूमिका है।शिवराज सिंह ने कहा कि हमारी कोशिश है कि लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सभी संस्थान एक दिशा में काम करें। साथ ही, उन्होंने कहा कि कृषि विकास दर 5 प्रतिशत बनाए रखना हमारा लक्ष्य है।

पूसा परिसर, दिल्ली में मीडिया से चर्चा में कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह ने कहा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और आजीविका का भी सबसे बड़ा साधन है। प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से 50 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है और जीडीपी में 18 प्रतिशत कृषि क्षेत्र का योगदान है। आने वाले समय में भी खेती अर्थव्यवस्था के केंद्र में रहेगी। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का संकल्प है विकसित भारत का निर्माण और विकसित भारत के लिए विकसित खेती और समृद्ध किसान हमारा मूलमंत्र है।
उन्होंने कहा कि आज सम्मेलन के जरिए विकसित खेती और समृद्ध किसान के लिए जो चर्चा हम कर रहे हैं शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ है। उत्पादन बढ़ाने और उत्पादन की लागत में अनुसंधान की बहुत अहम भूमिका है। पूरे परिदृश्य को देखे तो केंद्र, राज्यों के कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विभागों का अमला, आईसीएआर के 113 संस्थान हो या 731 कृषि विज्ञान केंद्र हो, सबका बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। हमारी कोशिश है कि लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ये सभी संस्थान एक दिशा में काम करें। एक राष्ट्र-एक कृषि-एक टीम के रूप में काम करने विचार किया जा रहा है। अगर कृषि के क्षेत्र में 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त करना है तो 5 प्रतिशत की कृषि विकास दर (एलाइड सेक्टर) को लगातार बनाए रखना होगा।
केंद्रीय मंत्री श्री शिवराज सिंह ने बताया कि आज के सम्मेलन के दौरान विचार मंथन में यह बात निकलकर आई है कि इस लक्ष्य को अर्जित किया जा सकता है। कृषि विकास दर 5 प्रतिशत बनाए रखना संभव है। श्री चौहान ने कहा कि देश के 93 प्रतिशत हिस्से में अनाज की बुआई होती है, लेकिन दलहन और तिलहन के मामले में ग्रोथ रेट कम है, जो 1.5 प्रतिशत के आसपास है। उत्पादकता के लिहाज से भी अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न है। पंजाब में, हरियाणा में, छत्तीसगढ़ में विभिन्नताएं हैं। मक्के की ग्रोथ रेट तमिलनाडु में ज्यादा है तो उत्तर प्रदेश में कम है, इसलिए उत्पादकता के इस अंतर को भरने के लिए हम विचार कर रहे हैं। बहुत खराब और बहुत अच्छे उत्पादकता के अंतर को कम करके कम से कम औसत स्तर तक ले आना लक्ष्य है। इसके लिए विभिन्न कृषि संस्थानों और विभागों की भूमिका तय करने पर विचार किया जा रहा है।
श्री चौहान ने कहा कि अगर भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है तो एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था कृषि क्षेत्र को बनाना होगा। उसके हिसाब से लक्ष्य तय किए जा रहे हैं। अभी 6 प्रतिशत निर्यात होता है उसको बढ़ाकर 20 प्रतिशत तक करने का प्रयास है। आधुनिक तकनीक के माध्यम से लक्ष्य अर्जित करने पर ध्यान केंद्रित है। श्री चौहान ने कहा कि लैब को सीधे-सीधे किसान से जोड़ना का प्रयास होना चाहिए। शोध ऐसे होने चाहिए जो किसानों को फायदा पहुंचा सके। अभी 0.4 प्रतिशत के लगभग शोध पर खर्चा होता है, जिसे बढ़ाने पर भी विचार-विमर्श किया गया है। खेत की आवश्यकता के अनुसार अनुसंधान होना चाहिए। उत्पादन के अंतर को समाप्त करने के लिए तकनीक के बेहतर इस्तेमाल पर भी चर्चा हुई।हमारे यहां लैंड हॉल्डिंग काफी कम है और यह घटती भी जा रही है। वर्ष 2047 तक लैंड हॉल्डिंग घटकर 0.6 हेक्टेयर तक होने का अनुमान है। ऐसी परिस्थिति में केवल खाद्यान्न उत्पादन से काम नहीं चलेगा, उसके साथ और चीज जोड़नी पड़ेगी।मधुमक्खी पालन, पशुपालन, मत्स्यपालन, बागवानी इत्यादि को भी बढ़ावा देना होगा, जिस पर विचार किया जा रहा है।