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छत्तीसगढ़ी सम्मान को सशक्त करने वाले डॉ खूबचंद बघेल की मनाई गई जयंती…

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राजिम।आजादी का अमृत महोत्सव व महाविद्यालय के स्वर्ण जयंती वर्ष महोत्सव के अंतर्गत महाविद्यालय में डॉ खूबचंद बघेल जी की जयंती मनाई गई। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना व छत्तीसगढ़ महतारी की पूजा अर्चना और छत्तीसगढ़ राजकीय गीत गाकर की गई। कार्यक्रम में उपस्थित संस्था प्रमुख डॉ. सोनिता सत्संगी ने खूबचंद बघेल जी को छत्तीसगढ़ राज्य के प्रेरणा स्रोत की संज्ञा देते हुए कहा कि स्वतंत्रता पूर्व से ही बघेल जी सामाजिक क्षेत्रों की गतिविधियों में सक्रिय रहते थे। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उनका विद्रोह सशक्त व कठोर था। छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय पृष्ठभूमि पर लाने मे उनका विशेष योगदान रहा।

कार्यक्रम में उपस्थित विशेष अतिथि डॉ. समीक्षा चंद्राकर ने डॉ. बघेल जी को छत्तीसगढ़ी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के रूप में याद किया | जब डॉ. बघेल जी से पूछा गया कि छत्तीसगढ़िया की परिभाषा क्या है तो उन्होंने जवाब दिया “जो छत्तीसगढ़ के हित में अपना हित समझता है। छत्तीसगढ़ के मान सम्मान को अपना मान सम्मान समझता है और छत्तीसगढ़ के अपमान को अपना अपमान समझता है, वह छत्तीसगढ़िया है। चाहे वे किसी भी जाति, धर्म, भाषा और प्रांत के क्यों न हो।

कार्यक्रम में उपस्थित प्रो. आकाश बाघमारे ने डॉ . खूबचंद बघेल की रचना की जानकारी देते हुए बताया कि उनकी रचनाओं में सामाजिक असमानता पर और राष्ट्रीय भावना की झलक देखने को मिलती है। ऊंच-नीच, करम- छंड़हा , जनरैल सिंह जैसे नाटकों के माध्यम से जातिप्रथा, आम आदमी की गाथा का संदेश मिलता है।

संस्था के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. एम .एल. वर्मा ने बताया कि डॉ. बघेल स्वाधीनता आंदोलन के समय छत्तीसगढ़ी जनता के मार्गदर्शक रहे। वे असहयोग आंदोलन में विशेष रूप से जुड़े हुए थे। राष्ट्रीय स्तर पर उनका अपना ही वर्चस्व व नाम था।

नैक प्रभारी डॉ. गोवर्धन यदु ने डॉ. बघेल को छत्तीसगढ़ का युगपुरुष बताया और कहा कि “छत्तीसगढ़ महासभा” व “छत्तीसगढ़ भातृसंघ” का गठन कर सच्चे छत्तीसगढ़िया होने का अद्भुत प्रमाण डॉ. बघेल द्वारा दिया गया । आज छत्तीसगढ़ का जो मानचित्र हम देख रहे हैं उनके पीछे डॉ. बघेल की ही सोच थी । छत्तीसगढ़ के इस माटी पुत्र की विलक्षण प्रतिभा से राष्ट्रीय स्तर के नेता भी उन्हें सम्मान देते थे। डॉ. बघेल द्वारा चलाये गये पंक्ति तोड़ो आंदोलन और किसबिन नाच को समाप्त करने वाले आंदोलन से छत्तीसगढ़ की सामाजिक कुरीतियों पर लगाम लगा और सामाजिक उत्थान की दिशा में अभूतपूर्व परिवर्तन देखा गया था । छत्तीसगढ़ के स्वप्न दृष्टा ने भारत ही नहीं विश्व में छत्तीसगढ़ को अपनी अलग पहचान दी।

इस कार्यक्रम में प्रो. एम. एल. वर्मा, मुकेश कुर्रे, डॉ. देवेंद्र देवांगन, आलोक हिरवानी, नेहा सेन, श्वेता खरे व अन्य प्राध्यापकगण तथा राजू, हुमन, दिलीप, तेज व अन्य विद्यार्थीगण उपस्थित थे |

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