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हिजाब को लेकर दोनों जजों की राय अलग-अलग, सुप्रीम कोर्ट में 10 दिनों तक चली बहस…

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जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने आज मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया. बेंच ने 10 दिनों तक मामले में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 22 सितंबर को इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.


लंबे समय से चल रहे हिजाब विवाद पर फैसला अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच करेगी. दो जजों की बेंच आज अपना फैसला सुनाने वाला था लेकिन दोनों जजों में एकराय नहीं होने से मामला अब बड़ी बेंच के पास चला गया है. कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई चली और दोनों पक्षों ने अपने-अपने तर्क रखे. हिजाब को लेकर इसका समर्थन करने वाले पक्ष ने भी अपना तर्क रखा.



जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने आज गुरुवार को मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया. बेंच ने 10 दिनों तक मामले में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 22 सितंबर को इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
इससे पहले कर्नाटक में लंबे विवाद के बाद मामला जब कर्नाटक हाई कोर्ट में पहुंचा तो उसने 15 मार्च को राज्य के उडुपी में गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स



कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग द्वारा कक्षाओं के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है. हाई कोर्ट में 11 दिनों तक इस मामले की सुनवाई हुई थी.

10 दिन की सुनवाई में 5 अहम दलीलें
सुप्रीम कोर्ट में हिजाब के समर्थन में भी ढेरों दलीलें दी गईं. आइए, जानते हैं कि इस पक्ष की ओर से क्या-क्या कहा गया.

एडवोकेट शोएब आलम ने हिजाब के समर्थन में कहा कि एक तरफ मेरा शिक्षा का अधिकार है, वह भी धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का और दूसरी ओर अनुच्छेद 21 के तहत निजता, संस्कृति आदि का अधिकार मिला है. सरकार के आदेश का असर ये है कि- मैं तुम्हें शिक्षा दूंगा, तुम मुझे अपना निजता का अधिकार दो. राज्य मुझसे निजता के अपने अधिकार को सरेंडर करने के लिए नहीं कह सकता.

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, हिजाब अब मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा है, मेरा एक हिस्सा है. मुझे खत्म नहीं कर सकते. यह मेरी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है. क्या मेरा अधिकार कॉलेज के गेट पर रुकता है? उन्होंने आगे कहा कि कानून अभिव्यक्ति को तब तक प्रतिबंधित नहीं कर सकता. जब तक कि वह सार्वजनिक व्यवस्था या नैतिकता और शालीनता के खिलाफ न हो.

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, “मैं अनुच्छेद-19 और 14 पर अपनी दलीलें पेश करूंगा. जब स्कूलों में पगड़ी, तिलक और क्रास को प्रतिबंधित नहीं किया गया तो फिर हिजाब पर बैन क्यों? दरअसल ये सिर्फ एक धर्म को निशाना बनाने के लिए कहा गया है.”

प्रशांत भूषण ने कहा कि किसी भी मामले में यह भेदभावपूर्ण है, क्योंकि यदि आप हिजाब पर प्रतिबंध लगाते हैं. यदि आप कहते हैं, इसका कोई औचित्य नहीं है तो यह मनमाना है.

‘इस्लाम में महिलाओं को अपना सिर ढंकना जरूरी’
सीनियर एडवोकेट अब्दुल मजीद दार ने दलील दी कि कुरान के सूरा में कहा गया है कि इस्लाम में महिलाओं को अपना सिर ढंकना जरूरी है. इसे सबको मानना जरूरी है. यह नहीं कहा जा सकता कि इसे नहीं मानने पर दंड का प्रावधान नहीं किया गया, इसलिए इसे मानना जरूरी नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह गलती की है. कयामत के दिन यह देखा जाएगा कि किसने अच्छा काम किया, किसने गलत किया और उसके मुताबिक सजा मिलेगी.

वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि क्या हिजाब किसी भी तरह से सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता को ठेस पहुंचाता है? हम अगर प्रतिबंध लगाते हैं तो वह सबके लिए समान होना चाहिए. भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के हिसाब से आगे बढ़ना चाहिए. ऐसे में अदालत को भेदभाव पर गौर करना चाहिए जो कर्नाटक में सरकारी आदेश में किया गया है.


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