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EWS आरक्षण को रखा बरकरार, 10% आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर…

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS- Economically Weaker Sections ) के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना अहम फैसला सुना दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने EWS आरक्षण को बरकरार रखा है। कोर्ट ने इसे संविधान के खिलाफ नहीं बताया है। 10 फीसदी मिलता रहेगा आरक्षण 50 फीसदी से अधिक आरक्षण होने पर EWS आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट में इसे केंद्र सरकार की बड़ी जीत मानी जा रही है।



सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण मिलता रहेगा। 3 जजों ने समर्थन में सुनाया फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की बेंच ने संविधान के 103वें संशोधन अधिनियम 2019 की वैधता को बरकरार रखा है। जिसमें सामान्य वर्ग के लिए 10% EWS आरक्षण प्रदान किया गया है। पांच में से तीन जजों ने अधिनियम को बरकरार रखने के पक्ष में अपना फैसला सुनाया, जबकि दो जजों ने इसपर असहमति जताई।

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, बेंच के जज दिनेश माहेश्वरी, बेला त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला ने EWS संशोधन को बरकरार रखा है। जबकि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया उदय यू ललित और जस्टिस रवींद्र भट ने इस पर असहमति व्यक्त की है। EWS संशोधन को बरकराकर रखने के पक्ष में निर्णय 3:2 के अनुपात में हुआ।

27 सितंबर को सुरक्षित रख लिया था फैसला शीर्ष अदालत ने सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या EWS आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है।


CJI यूयू ललित का सुप्रीम कोर्ट में आज आखिरी दिन, 6 बड़े मामलों पर सुनाएंगे फैसला, कार्यवाही का होगा सीधा प्रसारण शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं। EWS कोटा संशोधन का विरोध करते हुए उन्होंने इसे ‘पिछले दरवाजे से’ आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था। पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जे बी पारदीवाला भी शामिल थे। किसने क्या दी दलील? तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील शेखर नफाड़े ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण का आधार नहीं हो सकता है।

शीर्ष अदालत को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना होगा यदि वह इस आरक्षण को बनाए रखने का फैसला करता है। दूसरी ओर, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने संशोधन का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि इसके तहत प्रदान किया गया आरक्षण अलग है। उन्होंने कहा था कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया। उन्होंने कहा था कि इसलिए, संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। केंद्र सरकार ने एक फैसले के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में EWS कोटा कानून को चुनौती देने वाले लंबित मामलों को स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए कुछ याचिकाएं दायर की थीं। केंद्र ने 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से दाखिले और सरकारी सेवाओं में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है।

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