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काव्य गोष्ठी में कवियों ने छोड़े हास्य व्यंग के तीर

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राजिम । शहर के साहू छात्रावास में छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के तहसील इकाई के द्वारा काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें कवियों ने हास्य व्यंग्य के तीर छोड़े। छत्तीसगढ़ी कविताओं ने रंग जमाया तो नई कविता ने ऊंचाइयां प्रदान की तथा गीत से समा बांधा। कार्यक्रम की शुरुआत भक्त माता राजिम की पूजा अर्चना के साथ हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के जिला अध्यक्ष कवि काशीपुरी कुंदन थे उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि साहित्यकार स्वतंत्र होता है उसे कोई समिति बांध नहीं सकती। छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति का उद्देश्य है कि वह सब को साथ में लेकर चले। नए लिख रहे कोंपलों को मंच प्रदान करें ताकि प्रत्येक रचनाकार को प्लेटफार्म की कमी महसूस ना हो। उन्होंने अपनी व्यंग्य रचना की पंक्ति छोड़े। देखिएगा-ईमानदारी के चक्कर में योग्यता संपन्न व्यक्ति कानून की मार खाकर कायर हो जाता है। भ्रष्ट और निकम्मे लोगों के पहले रिटायर हो जाता है। कार्यक्रम का अध्यक्षता करते हुए तहसील इकाई के अध्यक्ष नूतन लाल साहू ने कहा कि राजिम साहित्य की भूमि है। मेरा भी प्रयास है कि सभी को एक साथ जोड़कर ऐसे कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति प्रदान करें। गोष्ठियों में कविताओं को सुधारने का अवसर मिलता है जबकि कवि सम्मेलन पर श्रोताओं का कब्जा होता है वहां सिर्फ प्रस्तुतीकरण होते हैं। आगे बढ़ने का यह बहुत ही अच्छा मंच है। आने वाले समय में अखिल भारतीय स्तर के कवि सम्मेलन का आयोजन होगा जिसमें स्थानीय उत्कृष्ट कवियों को भी अवसर प्रदान किया जाएगा। कार्यक्रम का संचालन करते हुए गीतकार प्रदीप साहू कुंवर दादा ने शेरो शायरी से माहौल पर चार चांद लगा दिए। उन्होंने शानदार पंक्ति प्रस्तुत किया, पेश है कुछ अंश-चीख लिखूं पुकार लिखू मैं पीड़ितों का आवाज लिखूं, उसूलों से समझौता जो करें तो विरोध का आगाज लिखूं। शायर जितेंद्र सुकुमार साहिर ने गजल सुनाते हुए कहा कि झूठ अदालत में गुंडागर्दी करता है बेबस एक कोने में सच्चाई रहती है। लम्हा लम्हा इतनी तन्हाई रहती है मुझसे दूर अब मेरी परछाई रहती है। हास्य व्यंग्य के कवि संतोष सेन ने खूब गुदगुदाया उनकी हास्य टुकड़िया देखिए-कोई बहू नहीं चाहती कि उनकी सास ललिता पवार जैसी हो, पर हर बहू की तकदीर में निरूपाराय जैसी सास नहीं होती। कवि एवं साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल ने दर्शन पर कविता सुनाते हुए कहा कि- बुढ़ापा जब सताता है प्रत्येक इच्छा खुद से छूट जाता है। जवानी के स्मरण में सारा समय गंवाकर मृत्यु के आगोश में समा जाता है। क्या यही जीवन का आलम है धर्म परोपकार को छोड़ स्वयं का पालन है यदि इसी का नाम जिंदगी है तो मनुष्य के वरदान का क्या मकसद। कवि तुकाराम कंसारी ने नई कलम का आगाज लिखता हूं जमीन पर रहकर आसमां का परवाज लिखता हूं गज़ल पढ़कर वाह-वाह कहने के लिए मजबूर कर दिया।इस मौके पर भोले साहू ने राजिम माता के ऊपर गीत प्रस्तुत किया। कवयित्री रमा भोसले, गणेश गुप्ता, प्रहलाद गंधर्व, डॉ रमेश सोनसायटी की कविता ने खूब तालियां बटोरी तुकाराम कंसारी की रिपोर्ट..

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