छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले के बाद आदिवासी समाज की बेचैनी बढ़ती जा रही है। छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के सोहन पोटाई धड़े और कुछ और युवा-छात्र संगठनों ने एक नवम्बर को राज्योत्सव के विरोध और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन की घोषणा की है। इस बीच कांग्रेस के आदिवासी विधायकों और मंत्रियाें का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिला है। मुख्यमंत्री ने कहा, समाज को घबराने की जरूरत नहीं है। आरक्षण के संबंध में अध्ययन के लिए आदिवासी समाज के विधायक तथा समाज प्रमुखों के संयुक्त दल को तमिलनाडु भेजा जाएगा।
आदिवासी समाज के मंत्री, विधायक और सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने 32% आदिवासी आरक्षण को बहाल करने की मांग लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की। इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में आरक्षित वर्ग का किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होगा, यह हमारी सर्वाेच्च प्राथमिकता में है। आदिवासियों के हित को ध्यान रखते हुए जो भी आवश्यक कदम होगा, वह उठाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा, जरूरत पड़ी तो आदिवासियों के आरक्षण के मुद्दे को लेकर विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाया जाएगा। उन्होंने प्रतिनिधि मंडल को आश्वस्त किया कि आरक्षण के संबंध में अध्ययन के लिए आदिवासी समाज के विधायक तथा समाज प्रमुखों के संयुक्त दल को तमिलनाडु भेजा जाएगा।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, आदिवासियों के हित और उनके संरक्षण के लिए संविधान से जो अधिकार मिले हैं, उसके पालन के लिए हमारी सरकार पूरी तरह से सजग होकर कार्य कर रही है। हमारी मंशा है कि संविधान द्वारा अनुसूचित जनजाति वर्ग को प्रदान किए गए सभी अधिकारों का संरक्षण किया जाएगा। उन्होंने कहा, इस विषय में सरकार स्वतः संज्ञान लेकर सभी जरूरी कदम उठा रही है, इसलिए आदिवासी समाज को बिल्कुल भी चिंचित होने की जरूरत नहीं है। इस प्रतिनिधिमंडल में आबकारी मंत्री कवासी लखमा, खाद्य मंत्री अमरजीत भगत, संसदीय सचिव यू.डी. मिंज, शिशुपाल सोरी, सरगुजा क्षेत्र विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष गुलाब कमरो, सरगुजा क्षेत्र विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष बृहस्पत सिंह, विधायक अनूप नाग और चक्रधर सिंह सिदार आदि शामिल थे।
अध्ययन दल की बात बार-बार उठ रही है
तमिलनाडू, कर्नाटक और झारखंड में 50% से अधिक आरक्षण है। उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद से बार-बार इन राज्यों में अध्ययन दल भेजने की बात हो रही है। सर्व आदिवासी समाज ने जब पहली बार मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी, उस दिन भी यह बात उठी थी। मुख्यमंत्री ने राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह को तत्काल अध्ययन के लिए निकलने को कहा था। सर्व आदिवासी समाज भारत सिंह धड़े ने मंत्रियों के साथ बैठकर तीन अध्ययन देल भेजने का फैसला किया था। वह काम भी परवान नहीं चढ़ा। अब फिर से अध्ययन दल भेजने की बात उठी है।
तमिलनाडु फॉर्मुले पर विशेषज्ञों को संदेह
संविधान और आरक्षण के विशेषज्ञों ने तमिलनाडू फॉर्मुले में राहत तलाशने की कोशिश को खतरनाक बताया है। विशेषज्ञ बी.के. मनीष का कहना है, सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण की वैधता पर एक संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख छोड़ा है। उच्चतम न्यायालय ने अब तक किसी भी राज्य में 50% से अधिक आरक्षण को बैध नहीं ठहराया है। तमिलनाडू में आरक्षण इसलिए भी बचा है कि विरोधी पक्षकारों पर हमला हुआ था। उसके बाद किसी ने भी 1993 के अधिनियम को चुनौती नहीं दी है। उस अधिनियम को संविधान की 9वीं अनुसूची में रखा गया है, लेकिन 2007 में आये आईआर कोएल्हो बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में 9 जजों की बेंच ने कह दिया है कि इस अनुसूची में शामिल किसी कानून को संविधान के बुनियादी ढांचे के उल्लंघन के आधार पर न्यायालय में चुनौती दिया जा सकता है।