हमारे देश में ज्यादातर लोग गोरेपन को सुंदरता की निशानी मानते हैं. यही नहीं जब किसी के परिवार में बच्चे पैदा होता है तो वह बच्चे के रंग के बारे में जरूर जानना चाहते हैं कि बच्चा गोरा है या फिर काला.
अगर बच्चा गोरा होगा तो हर कोई उसकी तारीफ करेगा और अगर बच्चा काला है तो उसके सुंदर ही नहीं माना जाएगा. इसीलिए ज्यादातर मां बाप की ख्वाहिश होती है कि उनका बच्चा गोरा हो. जिससे लोग उसे सुंदर करें. लेकिन आज हम आपको दुनिया की एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां के लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे काले हों. यही नहीं अगर उनके परिवार में कोई बच्चा गोरा पैदा हो जाता है तो वह उसे बिल्कुल वैसे ही व्यवहार करते हैं जैसे हमारे देश में काला बच्चा पैदा होने पर किया जाता है. यही नहीं अगर इनके परिवार में गोरा बच्चा पैदा हो जाता है तो वह उसे मार देते हैं.
गोरे बच्चों को उतार दिया जाता है मौत के घाट
दरअसल, हम बात कर रहे हैं अंडमान निकोबार द्वीप पर रहने वाली जारवा जनजाति की. इस जनजाति के बारे में कहा जाता है कि ये लोग अपने परिवार में सिर्फ काले बच्चे ही चाहते हैं. महिलाओं पर भी इस बात का जोर रहता है कि वे सिर्फ काले बच्चे ही पैदा करें. यही नहीं अगर यहां जन्म लेने वाला कोई भी बच्चा काले रंग का ना होकर थोड़ा भी साफ रंग का पैदा होता है, तो उसे भी मार दिया जाता है.
आखिर क्या है काले बच्चे की चाहत की वजह
दरअसल, इसके पीछे एक बड़ा कारण है. ऐसा बताया जाता है कि अगर यहां पर गोरा बच्चा पैदा होता है तो वह उनके समुदाय का न लगकर दूसरे समुदाय का लगता है. जिससे वह अपने और दूसरे समुदाय के बच्चों में कई बार फर्क नहीं कर पाते. जारवा जनजाति के लोग हजारों सालों से इस तरह की परंपरा को निभाते आ रहे हैं. इसीलिए ये लोग गोरे बच्चों को जन्म के तुरंत बाद मार देते हैं.
काला बच्चे पैदा करने के लिए ऐसे करते हैं यहां के लोग
यही नहीं यहां के लोग काला बच्चा पैदा करने के लिए कई तरह के जतन करते हैं. जिसमें जानवरों का खून पीना तक शामिल है. इन लोगों का मानना है कि अगर गर्भवती महिला जानवरों का खून पीती है तो वह काले बच्चे को जन्म देगी. इसीलिए इस समुदाय में अब ये मान्यता बन गई है.
हर गर्भवती महिला को खून पिलाया जाता है जिससे बच्चे का रंग गहरा हो जाता है और वह पैदा ही काला होता है. इसके अलावा जारवा जनजाति में नवजात को समुदाय से जुड़ी सभी महिलाएं हर हाल में बच्चे को स्तनपान ही कराती हैं. इसके पीछे जनजाति की मान्यता है कि इससे समुदाय की शुद्धता और पवित्रता बनी रहती है.