राजिम मेले में पहुंचे साधुओं के लिए न बिछाने को दरी है ना ही ओढ़ने को कंबल, राजिम मेले में आए साधु संतों की व्यवस्था को दरकिनार कर जिले के आला अफसर सिर्फ राजनीतिक योजनाओं के प्रचार एवं नेताओं के आवभगत में व्यस्त हैं। राजिम मेले में यह कोई पहला मामला नहीं है। विगत वर्षों से यही सिलसिला जारी है। राजिम मेले में आए साधु संतों का घोर अपमान किया जा रहा है। राजिम के धार्मिक महत्व को देखते हुए तथा इसकी महत्ता को बढ़ाने के लिए दूर-दूर से साधु और संत यहां पर स्नान करने के लिए आते हैं। किंतु शासन के द्वारा उनके रहने के लिए किसी भी प्रकार का उचित प्रबंध नहीं किया गया है। उनके पास बिछाने को ना तो कोई चादर है न ही ओढ़ने को कंबल।
साधु संत अपनी व्यवस्था के अनुसार जहां-तहां प्लास्टिक की चुमडियों को बिछाकर ऐसे ही सोए हुए हैं। राजिम एक धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व की स्थली है लेकिन धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व की स्थली में आए साधु और संतों के रहने के लिए उचित प्रबंध ना करना दुर्भाग्य का विषय है। मेले में आए साधु-संतों की व्यवस्था को लेकर ना तो कोई प्रशासनिक अधिकारी है। इनके खोज खबर को लेकर ना ही किसी को नियुक्त किया गया है। यह एक दुर्भाग्य का विषय है कि सभी अधिकारी व कर्मचारी केवल शासन की योजनाओं को प्रचार करने के लिए ही व्यवस्थाओं में मुग्ध हैं।
एक तरीके से यह माना जा सकता है कि राजिम मेला कोई धार्मिक मेला न होकर योजनाओं के प्रचार के लिए सिर्फ एक माध्यम बनकर रह गया है जिसे सिर्फ भुनाया जा रहा है। जहां पर शासन की योजनाओं के प्रचार मात्र के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिया जा रहा है। मेले का धार्मिक महत्व है लेकिन धार्मिक महत्व को बढ़ाने के लिए आए साधु-संतों को किसी भी प्रकार का तवज्जो नहीं दिया जा रहा है। यह देखना होगा कि इस खबर के प्रकाशित होने के बाद अधिकारी साधु-संतों के रहने की व्यवस्था को लेकर कोई इंतजाम करते है या नहीं।