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हिंदी दिवस पर प्रयाग साहित्य समिति द्वारा आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी में वक्ताओं ने रखे विचार…

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राजिम 15 सितंबर। प्रयाग साहित्य समिति के तत्वाधान में गायत्री मंदिर के सभागृह पर हिंदी दिवस के अवसर पर साहित्यिक संगोष्ठी संपन्न हुई। कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों द्वारा सर्वप्रथम मां भारती के छाया चित्र पर दीप प्रज्वलन के साथ ही पूजा अर्चना कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। मौके पर उपस्थित मुख्य अतिथि कृषि उपज मंडी समिति राजिम के अध्यक्ष रामकुमार गोस्वामी ने अपने उद्बोधन में कहा कि 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा बनाया गया। हमारे राजिम के साहित्यकारों ने पिछले कई सालों से हिंदी भाषा में साहित्य की रचना कर समाज को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं।

पंडित सुंदरलाल शर्मा, पुरुषोत्तम अनासक्त, छबीलाल अशांत,संत कवि पवन दीवान, कृष्णा रंजन, प्रशांत पारकर जैसे अनेक रचनाकारों की कृतियां जनमानस को दिशा दिखाने का काम किया है। वर्तमान में भी राजिम के कवि एवं लेखक लगातार साहित्य का रचना कर रहे हैं। राजिम की माटी साहित्य के लिए अत्यंत उर्वरा है। यदि किसी को कवि एवं साहित्यकार बनना है तो वह भगवान राजीवलोचन की भूमि राजिम से शुरुआत करें निश्चित रूप से देश दुनिया पर उनकी कलम की धार तेज हो जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि प्रयाग साहित्य समिति पिछले तीन-चार वर्षों में लगाकर साहित्यिक आयोजन से भाषा को आगे बढ़ाने का काम किए हैं इसके लिए मैं बधाई देता हूं। इसी तरह से लिखते रहे और माटी की खुशबू फैलाते रहे। कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख वक्ता
लेखक दिनेश चौहान ने कहा कि टिकना है तो अंग्रेजी बहुत जरूरी है और दुनिया को डिगाना है तो मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं है। जिसका उदाहरण चीन,रूस, जापान है। जहां मातृभाषा को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। शिक्षा के माध्यम में मातृभाषा को जरूरी मानता हूं। इसके लिए यदि व्यवहारिक कठिनाई आती है तो कम से कम इन्हें स्वतंत्र भाषा के रूप में जरूर पढ़ाया जा सकता है। हिंदी हमारी राजभाषा है मातृभाषा है कि नहीं इसमें विवाद हो सकता है क्योंकि हिंदी बहुत से प्रदेशों में संपर्क भाषा है।

लेखक एवं सेवानिवृत्त शिक्षक आर एन तिवारी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब भाषावाद प्रांतों का गठन हुआ तो उसमें हम हिंदी भाषी के रूप में जाने गए। राष्ट्रभाषा उस राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है हमें अपनी भाषा के प्रति सम्मान की भावना बरतना जरूरी है जब भी लिखे, पढ़ें या बोले व्याकरण संबंधी अशुद्धियों पर ज्यादा ध्यान दें।

कवि एवं साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल ने कहा कि निज भाषा की उन्नति के बिना हमारी प्रगति संभव नहीं है हिंदी के शब्दों को विश्व समुदाय ने भी स्वीकारा है आज हिंदी विश्व की लोकप्रिय भाषाओं में से एक है। हिंदी हमारी संस्कृति, साहित्य, रीति रिवाज, परंपराओं व सदियों से चले आ रहे ज्ञान को प्रवाहित करने वाली अविरल धारा है। हमें इस बात को स्वीकारना चाहिए कि मातृभाषा का रिश्ता धरती से है। व्यक्ति जिस भौगोलिक परिवेश में पैदा होता है वही भूगोल मातृभाषा का आधार बनता है। श्री सोनकर ने आगे कहा कि अपनी भाषा के ज्ञान के बिना कोई सच्चा देशभक्त नहीं बन सकता।

कवियत्री सरोज कंसारी ने कहा कि हिंदी हिंदुस्तान की आवाज है भाषाओं की रानी है हिंदी। यह विशाल सागर है जिसमें कई छोटी-बड़ी नदियां आकर समाहित हो जाती है हिंदी सूर्य की तेज प्रकाश है जो सर्वत्र व्याप्त है जिसकी महत्व को बताने की जरूरत नहीं है। यह सृजन का श्रेष्ठ माध्यम है बड़े बड़े साहित्यकार हुए जो हिंदी में सृजन कर भारत के प्राचीन इतिहास का बखान किए हैं। साहित्यकार व राजिम टाइम्स के संपादक तुकाराम कंसारी ने इस अवसर पर कहा कि हिंदी हमारी मातृभाषा है हम इसके लिए मर मिटने के लिए भी तैयार हैं। आजादी की लड़ाई में हिंदी भाषा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।मौके पर उपस्थित प्रसिद्ध व्यंग्यकार संतोष सेन ने व्यंग्य रचना पढ़कर लोगों को ताली बजाने के लिए मजबूर कर दिया। हास्य कवि गोकुल सेन ने हास्य से चुटकुले दिए। शायर जितेंद्र सुकुमार साहिर ने गजलों की पंक्ति देकर माहौल बना दिया। इस अवसर पर स्वागत भाषण प्रयाग साहित्य समिति के अध्यक्ष टीकम चंद सेन प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रयाग साहित्य समिति लगातार साहित्यिक आयोजन कर साहित्य के क्षेत्र में निरंतर काम कर रहे हैं। आगे भी करते रहेंगे। उपस्थित सभी वक्ता एवं अतिथि को शाल श्रीफल से सम्मानित किया गय कार्यक्रम का संचालन कवि नूतन साहू ने किया तथा आभार प्रकट समिति के कोषाध्यक्ष संतोष सोनकर ने किया।

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